Bhakti Parv Samagam in Virtual Form by Sant Nirankari Mission
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संत निरंकारी मिशन द्वारा वर्चुअल रूप में भक्ति पर्व समागम

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Bhakti Parv Samagam in Virtual Form by Sant Nirankari Mission

ईश्वर से जुडक़र प्रेम करना ही वास्तविक भक्ति है : निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज

चण्डीगढ। ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के उपरांत हृदय से जब भक्त और भगवान का नाता जुड़ जाता है, तभी वास्तविक रूप में भक्ति का आरंभ होता है। हमें स्वयं को इसी मार्ग की ओर अग्रसर करना है, जहाँ भक्त और भगवान का मिलन होता है। भक्ति केवल एक तरफा प्रेम नहीं यह तो ओत-प्रोत वाली अवस्था है। जहाँ भगवान अपने भक्त के प्रति अनुराग का भाव प्रकट करते हैय वहीं भक्त भी अपने हृदय में प्रेमाभक्ति का भाव रखते हैं।  यह उद्गार सत्गुरू माता सुदीक्षा जी महाराज द्वारा वर्चुअल रूप में आयोजित ‘भक्ति पर्व समागम’के अवसर पर ट्राईसिटी और विश्वभर के श्रद्धालु भक्तों एवं प्रभु प्रेमी सज्जनों को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए गये। इसका लाभ मिशन की वेबसाईट के माध्यम द्वारा सभी भक्तों ने प्राप्त किया। यह जानकारी श्रीमति राजकुमारी जी, मैम्बर इंचाजर्, संत निरंकारी मण्डल, प्रैस एवं पब्लिसिटी विभाग ने दी। 

    सत्गुरू माता जी ने आगे कहा कि जीवन का जो सार तत्त्व है वह शाश्वत रूप में यह निराकार प्रभु परमात्मा है। इससे जुडऩे के उपरांत जब हम अपना जीवन इस निराकार पर आधारित कर लेते हैंय तो फिर गलती करने की संभावनाएं कम हो जाती हैं। हमारी भक्ति का आधार यदि सत्य है तब फिर चाहे संस्कृति के रूप में हमारा झुकाव किसी भी ओर होय हम सहजता से ही इस मार्ग की ओर अग्रसर हो सकते हैं। किसी संत की नकल करने की बजाए, जब हम पुरातन सन्तों के जीवन से प्रेरणा लेते है तब जीवन में निखार आ जाता है। 

 यदि हम किसी स्वार्थ की पूर्ति के लिए ईश्वर की स्तुति करते हैं, तो वह भक्ति नहीं कहलाती। भक्ति तो हर पल, हर कर्म को करते हुए ईश्वर की याद में जीवन जीने का नाम हैय  यह एक हमारा स्वभाव बन जाना चाहिए। 

    सत्गुरू माता जी ने अंत में कहा कि भक्त जहाँ स्वयं की जिम्मेदारियों को निभाते हुए अपने जीवन को निखारता हैं, वहीं हर किसी के सुख-दुख में शामिल होकर यथा सम्भव उनकी सहायता करते हुए पूरे संसार के लिए खुशियों का कारण बनते है  इस संत समागम में देश-विदेश से मिशन के अनेक वक्ताओं ने भक्ति के सम्बन्ध में अपने भावो को विचार, गीत एवं कविताओं के माध्यम द्वारा प्रकट किया।